हिंदी न्यूज़लाइफस्टाइलधर्मParivartini Ekadashi 2024: परिवर्तिनी एकादशी की पूजा इस कथा के बिना अधूरी है, जानें महत्व
Parivartini Ekadashi 2024: भाद्रपद माह के परिवर्तिन एकादशी का व्रत करने से विष्णु (Vishnu) लोक की प्राप्त होती है. इस व्रत के प्रताप से व्यक्ति कभी न खत्म होने वाला पुण्य प्राप्त करता है. जानें ये कथा
By : एबीपी लाइव | Updated at : 14 Sep 2024 10:01 AM (IST)
परिवर्तिनी एकादशी 2024
Source : abplive
Parivartini Ekadashi 2024: भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है.चातुर्मास लगने के बाद श्रीहरि निद्रा अवस्था में चले जाते हैं, ये चातुर्मास परिवर्तिनी एकादशी पर श्रीहरि करवट बदलते हैं.
इस दिन श्रीहरि की पूजा करने वालों से दुर्भाग्य दूर रहता है. भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा कि परिवर्तिनी या पद्मा एकादशी का व्रत रखने और कथा सुनने से सभी प्रकार के पाप कट जाते हैं. जानें परिवर्तिनी एकादशी की कथा.
परिवर्तिनी एकादशी कथा (Parivartini Ekadashi Katha)
परिवर्तिनी एकादशी की कथा के अनुसार त्रेतायुग में बलि नाम का एक असुर था. वह अत्यन्त भक्त, दानी, सत्यवादी तथा ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था. वह सदा यज्ञ, तप आदि किया करता था. अपनी इसी भक्ति के प्रभाव से वह स्वर्ग में देवेन्द्र के स्थान पर राज्य करने लगा. देवराज इन्द्र तथा अन्य देवता इस बात को सहन नहीं कर सके और भगवान श्रीहरि के पास जाकर प्रार्थना करने लगे.
अन्त में मैंने वामन रूप धारण किया और तेजस्वी ब्राह्मण बालक के रूप में राजा बलि पर विजय प्राप्त की." यह सुनकर अर्जुन ने कहा - "हे लीलापति! आपने वामन रूप धारण करके उस बलि को किस प्रकार जीता, कृपा कर यह सब विस्तारपूर्वक बताइये।'
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा बोले मैंने वामन रूप धारण करके राजा बलि से याचना की- हे राजन! तुम मुझे तीन पग भूमि दान दे दो, इससे तुम्हें तीन लोक के दान का फल प्राप्त होगा.
राजा बलि ने इस छोटी-सी याचना को स्वीकार कर लिया और भूमि देने को तैयार हो गया. जब उसने मुझे वचन दे दिया, तब मैंने अपना आकार बढ़ाया और भूलोक में पैर, भुवन लोक में जंघा, स्वर्ग लोक में कमर, महलोक में पेट, जनलोक में हृदय, तपलोक में कण्ठ और सत्यलोक में मुख रखकर अपने शीर्ष को ऊँचा उठा लिया। उस समय सूर्य, नक्षत्र, इन्द्र तथा अन्य देवता मेरी स्तुति करने लगे.
मैंने राजा बलि से पूछा कि हे राजन! अब मैं तीसरा पग कहाँ रखूं इतना सुनकर राजा बलि ने अपना शीर्ष नीचे कर लिया. तब मैंने अपना तीसरा पग उसके शीर्ष पर रख दिया और इस प्रकार देवताओं के हित के लिए मैंने अपने उस असुर भक्त को पाताल लोक में पहुँचा दिया तब वह मुझसे विनती करने लगा.
मैने उससे कहा कि हे बलि! मैं सदैव तुम्हारे साथ रहूँगा. भादों के शुक्ल पक्ष की परिवर्तिनी नामक एकादशी के दिन मेरी एक प्रतिमा राजा बलि के पास रहती है और एक क्षीर सागर में शेषनाग पर शयन करती रहती है.'
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Published at : 14 Sep 2024 10:01 AM (IST)
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