Rabies Virus: रेबीज वायरस के संपर्क में आने और लक्षणों की शुरुआत के बीच का समय पांच दिन से लेकर दो साल से ज़्यादा तक हो सकता है.
By : एबीपी लाइव | Edited By: Swati Raj Laxmi | Updated at : 29 Sep 2024 07:11 AM (IST)
रेबीज का वायरस शरीर में कितने सालों तक रह सकता है?
रेबीज़ की बीमारी एक खतरनाक वायरल बीमारी है. जो संक्रमित जानवरों के काटने या खरोंचने से यह बीमारी फैलती है. इसे लिसावायरस के नाम से भी जाना जाता है. रेबीज वायरस के संपर्क में आने और लक्षणों की शुरुआत के बीच का समय 5 दिनों से लेकर 2 साल से ज़्यादा तक हो सकता है. मनुष्यों में इसकी अवधि 20-60 दिन होती है. लेकिन बच्चों में इसकी समय सीमा कम हो सकती है. कुछ ऐसे भी मामले होते हैं जिसमें सात साल बाद तक इस बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं.
इस बीमारी के ये हैं लक्षण
बुखार, चिंता, अस्वस्थता, झुनझुनी और काटने की जगह पर गंभीर खुजली, और अति सक्रियता और पक्षाघात जैसे तंत्रिका संबंधी लक्षण शामिल हैं.
रेबीज की रोकथाम के लिए WHO ने उठाया यह कदम
रेबीज 150 से ज़्यादा देशों और क्षेत्रों में एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है. मुख्य रूप से एशिया और अफ़्रीका में. यह एक वायरल, जूनोटिक, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पाई जाने वाली बीमारी है जो हर साल हज़ारों लोगों की मौत का कारण बनती है. जिसमें 40% ऐसे मामले हैं जो 15 साल से कम उम्र के बच्चे होते हैं. कुत्तों के काटने और खरोंचने से 99% मानव रेबीज के मामले होते हैं . कुत्तों के काटने वाले टीकाकरण के जरिए इसे रोका जा सकता है.
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एक बार जब वायरस शरीर के नर्वस सिस्टम को संक्रमित कर देता है और रोजमर्रा की जिंदगी में इसके लक्षण दिखाई देते हैं. तब रेबीज 100% मामलों में घातक होता है. हालांकि, वायरस को नर्वस सिस्टम तक पहुंचने से रोककर तुरंत पोस्ट एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (PEP) से रेबीज से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है. PEP में घाव को अच्छी तरह से धोना, मानव रेबीज वैक्सीन का एक कोर्स देना और, जब संकेत दिया जाता है तो रेबीज इम्युनोग्लोबुलिन (RIG) देना शामिल है.
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अगर किसी व्यक्ति को संभावित रूप से पागल जानवर ने काट लिया है या खरोंच दिया है, तो उन्हें तुरंत और हमेशा PEP देखभाल लेनी चाहिए. डब्ल्यूएचओ और उसके वैश्विक साझेदारों का लक्ष्य है कि कुत्तों के कारण होने वाली रेबीज से होने वाली मानव मृत्यु को समाप्त करना है, जिसमें बड़े पैमाने पर कुत्तों के टीकाकरण को बढ़ावा देना. पीईपी तक पहुंच सुनिश्चित करना, स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रशिक्षण, बेहतर निगरानी और सामुदायिक जागरूकता के माध्यम से काटने की रोकथाम शामिल है.
Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. आप किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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Published at : 29 Sep 2024 07:11 AM (IST)
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संजीव श्रीवास्तव, फॉरेन एक्सपर्टForeign Expert