(Source: ECI | ABP NEWS)
हाल ही में एक खतरनाक वायरस मारबर्ग का प्रकोप पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है. मारबर्ग वायरस ने रवांडा में 12 से अधिक लोगों की जान ले ली है.
By : एबीपी लाइव | Updated at : 08 Oct 2024 09:19 AM (IST)
मारबर्ग वायरस की पहचान सबसे पहले 1967 में जर्मनी के मारबर्ग में एक प्रयोगशाला कर्मचारी ने की थी. यह इबोला वायरस के ही परिवार का है. यह वायरल रक्तस्रावी बुखार है, जो घातक रक्तस्राव और अंगों में विफलता का कारण बनता है.
इस वायरस को इसका नाम उस जगह से मिला है जहां यह पहली बार पाया गया था. इबोला शहर. वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि यह मूल रूप से अफ़्रीकी फल चमगादड़ों से आया है. चूंकि ये चमगादड़ बिना किसी लक्षण के वायरस के संरक्षित वाहक हैं. इसलिए वे इस बीमारी के प्राकृतिक मेजबान और वाहक हैं.
मारबर्ग वायरस मुख्य रूप से जानवरों से प्राप्त 'जूनोटिक' है. और यह संक्रमित फल चमगादड़ों से या संक्रमित व्यक्ति के संक्रमित शरीर के तरल पदार्थ के सीधे संपर्क से भी मनुष्यों में फैल सकता है.
यह मुख्य रूप से दफनाने की प्रक्रिया के दौरान होता है जब शोक मनाने वाले लोग मृत व्यक्ति के शरीर के संपर्क में आते हैं. यह संक्रमित वस्तुओं जैसे कि सुई या अन्य चिकित्सा उपकरणों के साथ निकट संपर्क से भी फैल सकता है.
मारबर्ग वायरस संक्रमण के लक्षण इबोला के समान हैं. लेकिन वायरस के संपर्क में आने के 2 से 21 दिनों के बीच कहीं भी प्रकट हो सकते हैं. शुरुआत में, यह फ्लू, बुखार, सिरदर्द और मांसपेशियों में दर्द जैसे लक्षण दिखा सकता है. यह पेट में दर्दनाक लक्षणों, दस्त, उल्टी और शरीर के कुछ हिस्सों में रक्तस्राव के साथ और अधिक प्रकट हो सकता है.
मारबर्ग वायरस संक्रमण के लिए कोई विशिष्ट उपचार या इलाज ज्ञात नहीं है. उपचार के लिए सहायक देखभाल मुख्य आधार में द्रव और इलेक्ट्रोलाइट संतुलन बनाए रखना और होने वाले किसी भी संक्रमण का उपचार शामिल है.
Published at : 08 Oct 2024 09:19 AM (IST)
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रुमान हाशमी, वरिष्ठ पत्रकार